सवाल व जवाब: मोजज़ा व करामात

मेजज़ा एक खिलाफे आदत होने वाले वाकेआ (घटना) को कहते है और ये सिर्फ अंबिया और पैगम्बरों के हाथो से ज़ाहिर होता है। कुछ उलेमा ‘‘करामात’’ का लफ्ज भी इस्तेमाल करते है। वह इसकी मुताद्दिद तआरिफे (परिभाषा) भी करते है और इसको आयात और हदीस की रोशनी में साबित करने की कोशिश करते है। स्वाल यह है:- क्या करामत नाम कि किसी चीज़ का वजूद है के नहीं? अगर जवाब मुस्बत है तो हम इस मसअले की मुकम्मल वज़ाहत (explanation) चाहते है और अगर जवाब नफी में है तो फिर असहाबे कहफ के किस्से को हम कैसे देखते है, या असहाबुल उखदूद का वाकेआ और हज़रत उमर (रजि.) का पहाड़ को पुकारना के ‘‘ऐ सारया!’’ और सअद इब्ने वक्कास का दरिया-ए-दजला के पार  करने का मुआमला और इसी तरह के दीगर वाकेआत कि क्या वज़ाहत हैं?
जवाब (1) अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने कायनात, इन्सान और हायत को कुछ खास क़वानीने और खुसिसायत के साथ तख्लीक़ किया है। जिसको इन्सान न तोड़ सकता है और न ही तब्दील कर सकता है।

‘‘न सूरज के बस में ये है के वह चांद को जा पकड़े और न रात दिन पर सबक़त ले जा सकती है। सब एक-एक फलक में तैर रहे है’’।  (यासीन - 40)

“और ज़मीन मे बहुत सारी निशानियाँ है इमान लाने वालों के लिये, और खुद तुम्हारे नुफूस मे है. क्या तुम को सूझता नहीँ?”

“वही तो है जिसने सूरज को रोशन और चांद को मुनव्वर बनाया और चांद के घटने-बढ़ने की मंजिले ठीक-ठीक मुकर्र कर दी ताकि तुम उससे बरसों और तारीखों के हिसाब मालूम करो। अल्लाह ने ये सब कुछ (खेल के तौर पर नहीं) बल्कि बामक़सद ही बनाया। वह अपनी निशानियों को खोल-खोल कर पेश कर रहा हैं उन लोगों के लिए जो इल्म रखते हैं। यकीनन रात और दिन के उलट फेर में और हर उस चीज़ में जो अल्लाह ने ज़मीन और आसमानों में पैदा की है, निशानियाँ है उन लोगों के लिए जो (ग़लत बीनी व ग़लत रविश से) बचना चाहते है।’’ (सूरह युनूस: 6)

‘‘हम ही ने आसमाने दुनिया को सितारों की ज़ीनत से मुज़य्यन किया’’ (सूरह अस्साफात: 6)

“और हम ने आसमान मे बुर्ज बनाए और देखने वालों के लिये उन को सजा दिया”.
ये उन मुताद्दिद आयात में से बस चन्द ही है जो ये बात ज़ाहिर करती है:
(2) अल्लाह सुब्हानहु तआला ने मखलूक के लिए उनकी कुदरती सलाहीयतों के मुताबिक ज़िन्दगी को आसान करके बनाया है। इन्सान परिन्दों की तरह अपने आप हवाओं में नहीं उड सकता न ही समन्दर की मखलूक की तरह अपने आप पानी में तैरा सकता है। वह ज़मीन पर अपने दो पैर के साथ चलता है और अल्लाह के कानून को नहीं तोड़ सकता कि पानी पर चलना शुरू कर दे, या हवा में उड़ना शुरू कर दे।

‘‘और ज़मीन में चलने वाले किसी जानवर और हवा में उड़ने वाले किसी परिन्दों को देख लो, ये सब तुम्हारी ही तरह की अन्वा (जान) है, हमने इनकी तकदीर के नोष्ते में कोई कसर नहीं छोड़ी है, फिर ये सब अपने रब की तरफ जमा किये जायेंगे। (सूरह अल आनाम: 38)

‘‘और अल्लाह ने हर चलने फिरने वाले जानवर को पानी से पैदा किया। कोई पेट के बल चल रहा है तो कोई दो टांगो पर और कोई चार टांगों पर, जो कुछ वह चाहता है पैदा करता है, वह हर चीज़ पर कादिर है’’ (सूरह नूर: 45)
(3) इसी तरह अल्लाह ने अशिया के अन्दर कुछ मख्सूस खुसुसियात रखी है, जिनको वह बदल नही सकते। आग जलाती है और किसी के पास यह सलाहियत नही के वह उससे उसकी जलाने की खुसूसियात निकाल सके। सिर्फ अल्लाह (سبحانه وتعالى) खुद उस खुसूसियात को खत्म कर सकतें है मसलन जब अल्लाह तआला ने इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) को आग से बचाया, तो अल्लाह (سبحانه وتعالى) ने आग की जलाने की खुसूसियात को खत्म कर दी. अल्लाह (سبحانه وتعالى) फरमाता है:

‘‘हमने कहा! ऐ आग, सर्द हो जा और सलामती बन जा इब्राहीम पर’’ (सूरह अल अंबिया: 69)
(4) मज़ीद, अल्लाह ने दुनिया को हमारे लिए मुसख्खर (मातहत या क़ाबू मे) कर रखा है ताकि हम इसमें कुरदत के क़वानीन के मुताबिक ज़िन्दगी बसर कर सके। इन क़वानीन में कोई भी दखल अन्दाज़ी दुनिया के हमारे लिए मुसख्खर (मातहत) रहने के मफहूम की नफी (इंकार) करता है (यानी यह की यह हमारी ज़रूरतो के मुताबिक़ नहीं है)। सिर्फ अल्लाह तआला ही इन कवानीन में दखल अन्दाज़ी कर सकता है। अगर अल्लाह तआला ऐसी किसी दखल अन्दाजी के बारे में हमें खबर देते है तो हम उसकी ताईद करते है और अगर इसके बारे में नहीं बताया गया तो कोई भी मुआमला दुनिया के हमारे लिए मुसख्खिर करने के ज़ुमरे में ही समझा जाता है (यानी क़ुदरत के क़वानीन के अन्दर ही समझा जाता है)।

‘‘और वही तो है जिसने तुम्हारे लिए समन्दर को मुसख्खिर (मातहत) कर रखा है ताकि तुम इससे तरो-ताज़ा गोश्त लेकर खाओ और इससे वह जी़नत की चीज़े निकालो जिन्हें तुम पहना करते हो। और तुम देख लो कि कश्ती समन्दर का सीना चीरती हुई चलती है। ये सब कुछ इसलिए है कि तुम अपने रब का फज़ल तलाश करो और उसके शुक्र गुज़ार बनो।’’ (सूरह अल नहल: 14)

‘‘क्या तुम देखते नहीं हो के उसने वह सब कुछ तुम्हारे लिए मुसख्खिर कर रखा है तो ज़मीन में है और उसी ने कश्ती को क़ायदे का पाबन्द बनाया है कि वह उसके हुक्म से समुन्दर में चलती है और वही आसमान को इस तरह थामे हुए है कि इज़्न (हुक्म) के बगैर वह ज़मीन पर नहीं गिर सकता? वाक़या ये है कि अल्लाह लोगों के हक़ में बडा शफीक़ और रहीम है।’’ (सूरह अल हज्ज: 65)

‘‘क्या तुम लोग नही देखते के अल्लाह ने ज़मीन और आसमानों की सारी चीज़े तुम्हारे लिए मुसख्खर कर रखी है। और अपनी खुली और छुपी निअमते तुम पर तमाम कर दी है? इस पर हाल ये है कि मुसलमानों में से कुछ लोग है जो अल्लाह के बारे में झगड़ते है।  बगैर इसके के इनके पास कोई इल्म हो या हिदायत, या कोई रोशनी दिखाने वाली किताब’’ (सूरह लुक्मान: 20)

‘‘........और उसी ने सूरज और चांद और तारे पैदा किये, सब उसके फरमान के ताबेअ है। खबरदार रहो!!! उसी की खल्क़ (रचना) है और उसी का अम्र (हुक्म) है। बड़ा बा बरकत है अल्लाह, सारे जहानों का मालिक परवर दिगार’’ (सूरह अल आराफ: 54)

‘‘और जिसने कश्ती को तुम्हारे लिए मुसख्खर किया के समन्दर में उसके हुक्म से चले और दरियाओं को तुम्हारे लिऐ मुसख्खिर किया। जिसने सूरज और चांद को तुम्हारे लिए मुसख्खर किया के लगातार चले जा रहे है और रात और दिन को तुम्हारे लिए मुसख्खर किया। (सूरह इब्राहीम  32-33)
(5) अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने अंबिया को भेजा है और उनको मोजज़े अता कियो जो उनकी नबूवत को साबित करते है। ये मोजज़े गैर-मामूली वाकेआत होते है, जो कि आम कवानीन की खिलाफ वरज़ी करते है। जहां अल्लाह तआला कुदरत के कुछ क़वानीन को खत्म करके इनको अंबिया के ताबेअ कर देते है, इंसानियत के लिए एक चैलेंज और सबूत के तौर पर के इस मोजज़े का हामिल शख्स यकीनन अल्लाह ही का नबी है।
अल्लाह तआला ने मूसा (अलैहिस्सलाम) के ठोस असा को एक हक़ीक़ी अज़दहा (सांप) में तब्दील कर दिया जो कि जादू की तरह सिर्फ नज़र का धोखा नहीं था। जब जादूगरों ने ऐसा होते देखा तो वह सबसे पहले मूसा (अलैहिस्सलाम) की नबूवत पर ईमान लाए। क्योंकि वह जानते थे कि ऐसी हक़ीक़ी तब्दीली इंसान के बस की बात नहीं है। इसी तरह जब अल्लाह तआला ने समुन्दर को दो हिस्सों मे तक़सीम कर दिया था के मूसा (अलैहिस्सलाम) और उनके साथी उसे पार कर सकें और उसी तरह अल्ला (سبحانه وتعالى) ने ईसा (अलैहिस्सलाम) के हाथों मुर्दों को ज़िन्दा कर दिये थे. इसी तरह हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) का अरबी ज़बान बोलना था (कुरआन) जो के अरबीयों के लिए बोलना इंसानी तौर पर मुमकिन नहीं था।
मोजज़ों का अंबिया और रसूलों के ज़रिए वकूअ पज़ीर होना एक जाना माना मुआमला है और इसी तरह इसके दलाइल भी।
(6) जहाँ तक ‘‘कारामत’’ का ताल्लुक है, जो के पैगम्बरों और रसूलों के अलावा दुसरे लोगों से वकूअ पज़ीर होती है तो ये दरअसल अल्लाह की तरफ से ‘‘तौफिक़’’ होती है अपने किसी बन्दे के लिए के वह कोई काम हैरतअंगेज कमाल के साथ कर गुजरता है। ये कमाल कोई गैर-मामूली भी हो सकता है और आम सा काम भी। ये कमाल अल्लाह की दी हुई ‘‘तौफिक़’’ के ज़ोर पर ही वकूअ पज़ीर होता है।
अगर ये गैर-मामूली हो तो अल्लाह उसकी खबर हमें देता है, क्यों नसूस (क़ुरआन और सुन्नत) में अल्लाह तआला के इस कायनात को इंसान के लिए मुसख्खर कर देने के दलाइल की नोईयत आम है, यानी के आफाक़ी क़वानीन (universal laws) के मुताबिक मुसख्खर करने की. लिहाज़ा इस तस्खीर को मोअत्तल करना या इन क़वानीन को तोड़ना, ऐसी किसी बात की दलील के लिये नासूस (क़ुरआन और सुन्नत) में तख्सीस दरकार होगी। अगर ऐसी कोई नस मिलती है तो हम तसदीक करते है। लेकिन अगर किसी गैर-मामूली काम के बारे में कोई नस नहीं मिलती तो फिर किसी भी वाकेअ को अल्लाह तआला की तरफ से ‘‘आफाकी’’ कवानीन (universal laws) के अन्दर रहते हुए ‘‘तौफिक’’ देने की नज़र से देखा जाएगा।

लिहाज़ा हम मरियम अलैहिस्सलाम को अता करदाह रिज़्क की तसदीक करते है जो कि गैर मामूली तौर पर आता था क्योंकि अल्लाह तआला ने हमें इसके बारे में बताया है:
‘‘ज़करिया जब कभी उसके पास मेहराब में जाता तो उसके पास कुछ न कुछ खाने-पिने का सामान पाता। पूछता मरियम! ये तेरे पास कहां से आया है? वह जवाब देती अल्लाह के पास से आया है, अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब देता है’’ (सूरे आले इमरान: 37)
यही कायदा कुरान व सुन्नत में मौजूद तमाम नसूस पर लागू होता है जिसमें रसूलों और पैगम्बरों के अलावा दूसरे लोगों से रोनुमा होने वाले गैर मामूली नोईयत के वाकेआत के बारे में बताया गया है। हम इन नसूस की कतईयत की मजबूती के मुताबिक इनकी तसदीक करते है। यानी हम इनकी तस्दीक कतई तौर पर करते है। अगर वह सबूत और दलाइल के लिहाज़ से कतई हो और हम इनकी तस्दीक ज़न्नी तौर पर करते है अगर वह सबूत या दलाइल में से किसी एक लिहाज़ से भी जन्नी हो।
ये जवाब है इस सवाल का जो आपने गैर मामूली वाकिआत के हवाले से पूछा जो कि नसूस में दर्ज है। मसलन अहले कहफ, असहाबुल उखदूद और मरियम (अलैहिस्सलाम) के वाकेआत। ये सारे वाकेआत कुरआन में आए है इसलिए हम इनकी तस्दीक करते है।
रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) की वफात के बाद वह्यी का सिलसिला खत्म हो चुका, सिवाय इजमाए सबाहा (रज़िअल्लाहु तआला अनहुमा) जो के किसी ऐसी दलील का इज़हार होता है जो सहाबा ने रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) से सुनी लेकिन उन से वाज़ेह तौर से रिवायत नहीं की गई. और अलावा कुछ अहादीसे नबवी के जो इनकी ज़िन्दगी में बताई गई है जिनमें कुछ सहाबा का नाम लेकर इनकी तआरीफ की गई है। इनके आमाल और अक़वाल के वास्ते जो वह ‘‘तौफिक’’ के ज़रिये करते थे जिसकी बदौलत वह गैर-मामूली नोईयत के होते थे। लिहाजा अगर नसूस मौजूद हो जो मखसूस अफराद के बारे में मखसूस हालात में कुछ आमाल और अकवाल के वकूअ पज़ीर होने को बताते हों तो हम उनकी सेहत के मुताबिक इनकी तस्दीक करते है।
जहाँ तक इन आमाल व अक़वाल का ताल्लुक है जो कुछ मुसलमानों ने अन्ज़ाम दिये है जिनके बारे में कोई नस मौजूद नहीं है तो ये कभी खिलाफे आदत नहीं हो सकते। वह आफाकी कवानीन के दायरे में ही होते रहते है और अल्लाह तआला की दी गई ‘‘तौफिक’’ का नतीजा होते है जो वह अपने परहेज़गार बन्दों को उनके आमाल में कामयाबी के लिए देता है और उनको दुश्मनों के शर से बाचन के लिए और इस तरह की दीगर चीज़ों के लिए।
(7) जहाँ तक इस बात का ताल्लुक है कि हज़रत उमर (رضي الله عنه) ने पुकारा, ‘‘ऐ सारया पहाड़! और अल्लाह ने इस पुकार को सिपाहियों तक पहुंचा दिया। इस तरह के वाह अपने दुश्मनों पर फातेह हो गए। तो हम इसकी तस्दीक करते है। क्योंकि रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने उमर (رضي الله عنه) के बारे में फरमाया के ‘‘अल्लाह ने उमर की ज़बान पर हक़ (रख) दिया है जिससे वह बोलते है। ‘‘(अबू दाउद में अबूज़र से रिवायत और रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फरमाया के ‘‘अल्लान ने उमर की ज़बान पर हक रख दिया है और उनके दिल में भी हक रख दिया। (मसनद अहमद बरिवायत इब्ने उमर)
लिहाजा हम इन अहादीस को लेते है और इस बात की तस्दीक करते हैं कि उमर (رضي الله عنه) ने पुकारा ‘‘ओ सरिया पहाड!’’ इन रिवायत की क़वी सेहत होनो के मुताबिक रसूल्ललाह (صلى الله عليه وسلم) की इन अहादीस की बुनियाद पर है।
(8) जहां तक सअद इब्ने अबी वकास (رضي الله عنه) के दरिया के पार करने का ताल्लुक है, पहले की तरह हम इसकी तस्दीक करते है। रिवायत की सेहत के मुताबिक ये इसलिए की अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने सअद की खुसूसी तौर पर इन अल्फाज में तारीफ की थी के ‘जो शख्य इस दरवाज़े से अभी दाखिल होगा, वह जन्नतीयों में से है’’। इसके बाद सअद इबने वकास (رضي الله عنه) दाखिल हुए। (मसनद अहमद बरिवायत इब्ने उमर (رضي الله عنه))
इब्ने उमर (رضي الله عنه) ये भी बयान करते है के ‘‘हम अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) के साथ बैठे थे कि रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फरमाया ‘‘जन्नत के लोगों में से एक शख्स इस दरवाज़े से तुम्हारी तरफ आएगा’’ जैसे ही रसूल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने ये कहां सअद बिन अबी वकास दाखिल हुए’’ (इब्ने हिब्बान)
मज़ीद ये के अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने अल्लाह से सअद (رضي الله عنه) की दुआ की कबुलियत की दुआ की जैसा के अल हाकिम (रहमतुल्लाहे अलय) की मुस्तदरक़ में और बैहिकी (रहमतुल्लाहे अलय) की दलाइलुल नबुव्वत में दर्ज है। मज़ीद बरा कैस इब्ने अबी हाज़िम से इब्ने हब्बान ने रिवायत किया के उन्होंने फरमाया ‘‘मैंने सअद को ये कहते हुए सुना है कि अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने मुझसे ये कहा के ऐ अल्लाह! जब सअद पुकारे तो उसका जवाब दे (कबूल करें)’’ अल हाकिम ने इस रिवायत की सनद को मज़बूत बताया है और वह रिवायत जिसमें सअद (رضي الله عنه) का दरियाए दजला की जंगे मदाइन के मौके पर पार करने का जिक्र है, इसमें दर्ज है के सअद (رضي الله عنه) ने अपने सिपाहीयों को हरकत में लाते हुए कहा: ‘‘मैंने फैसला कर लिया है कि हम दुश्मनों का मुकाबला करेंगे इससे पहले के दुनिया हमें खत्म करे, बेशक मैंने फैसला कर लिया है के इस दरिया को पार किया जाए’’!। फिर सअद (رضي الله عنه) ने अल्लाह तआला को पुकारते हुए अपने फौजियों से खिताब किया:
‘‘कहो, हम अल्लाह की मदद चाहते है और हम अल्लाह ही पर भरोसा करते है। अल्लाह हमारे लिए काफी है और वह मुआमलात को सब से बहतर पूरा करने वाला है। अल्लाह की कसम! अल्लाह अपने परहेज़गार बंदी को फतहयाब करता है, अल्लाह अपने दीन को गालिब करता है और दुश्मनों को मिटा देता है। अल्लाह के सिवाय कोई क़ुव्व्त और ताकत नहीं, वह बरतर है और अज़ीम है’’. फिर उन्होंने एक के बाद एक दरिया को पार किया जिसके बाद घोड़ो ने भी दरिया को पार कर लिया।
कुछ रिवायात बताती है के दरिया के दरमियान रास्ते थे जो के छोटी लहरों के औक़ात में घोड़े के जिस्म के जिनते ऊँचे थे। तुग़यानी के औकात में पानी बहुत उपर उठ जाता था और सअद (رضي الله عنه) के वाकेअ के वक्त दरिया की यही कैफियत थी। ये भी हो सकता है कि उन्होंने कुछ मख्सूस रास्ते से दरिया को पार किया हो, अगरचे रिवायात से जो बात समझ आती है वह ये है की उन्होंने उंची लहरों के औक़ात में दरिया को पार किया।
कुछ रिवायत बताती है के दरिया को पार करते वक्त उनमें से एक बन्दा ढूब गया। इब्ने कलबी बयान करते है के सलील इब्ने जै़द, जो ईराक के मआरके (जंग) के मौके पर मौजूद था, वह डूब गया था जब मुसलमानों ने मदाइन मे दाखिल होने के लिये दजला को पार किया. अत्तबरी अपनी तारीख मे बयान करते हैं की जब मुसलमानों ने दजला नदी को पार किया तो सब बाहिफाज़त पार हो गए सिवाय एक आदमी के जिसका नाम गरक़ादा था जो अपने घोड़े की पीठ से फिसल गया तो अलकआका बिन अमरू ने अपनी लगाम उसकी तरफ फैंकी जो उसने पकड़ ली और वह पार हो गया।
लिहाजा एक बन्दे के डूब जाने की रिवायत मौजूद है और कुछ रिवायात एक बन्दे के दरिया में फिसल जाने की मौजूद है। मुआमला कोई भी हो, चाहे ये वाक़िया गैर-मामूली नोईयत का हो या आम नोईयत का हो, हम इसकी तस्दीक उसकी रिवायत की सहत की मजबूती के मुताबिक करते है, यानी के हम इस बुनियाद पर इसकी तस्दीक करते हैं के सअद (رضي الله عنه) की दुआऐं कबूल की जाती है और उन्होंने अल्लाह से अपनी फतेह और दुश्मनों की शिकस्त की दुआ की थी और इसलिए के रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने बयान किया था के वह जन्नतीयों में से हैं और आप (صلى الله عليه وسلم) ने अल्लाह से उनकी दुआओं की कबूलियत की दुआ की थी।

खुलासा
•    कायनात कुछ क़वानीन और खुसूसियात के मुताबिक इन्सानों के लिए मुसख्खर कर दी गई है।
•    इन कवानीन और खुसूसियात की खिलाफ वर्ज़ी इन्सान के लिए मुसख्खिर करने के हवाले से मौजूद आम नसूस में तख्सीस के ज़रिए ही मुमकन है (यानी क़ुरआन और सुन्नत के ऐसे वाकिया का खास तौर से ज़िक्र हो)।
•    कभी भी गैर मामूली वाकेआ (जो के किसी आफाकी कानून को तोड़ दे) की तस्दीक के लिए नस (क़ुरआन और सुन्नत की दलील) दरकार है।
•    अगर ऐसी कोई नस मौजूद नहीं है तो यही तसव्वुर किया जाएगा के तमाम मामलात अपनी वदीयत करदा फितरत के मुताबिक वकूअ पज़ीर होते है जिसके उपर अल्लाह ने उन्हें तखलीक़ किया है।
•    अगर कोई नस मौजूद है तो हम उसकी रिवायत और दलालत की मज़बूती की बुनियाद पर उसकी तस्दीक करते है। मसलन रसूलों के मोजज़ात और रसूलों के अलावा दिगर लोगों ती तरफ से ‘‘करामात’’ के जिनके बारे में कोई नस आई है।
•    जहां तक बाकी तमाम चीज़ों का ताल्लुक है जिनके बारे में कोई नस मौजूद नहीं है, कोई मुसलमान चाहे केतना ही मुत्तकी हो, उसका कोई भी हैरत अंगेज़ काम या कौल कुदरत के क़वानीन और खुसूसियात से तजावुज़ नहीं कर सकता। बल्कि ये अल्लाह तआला की तरफ से अपने बंदों के लिए ‘‘तौफिक’’ होती है के वह अपने आमाल में कामयाब हो जाए या दुश्मन के शर से महफूज़ रहे।
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