गज़वा-ए-तबूक - 24

ग़ज़वा-ए-तबूक - 24
अल्लाह के रसूल सल्ल0 को रोमियो की ख़बर मिली के वोह अ़रब के शिमाली इलाक़ों पर हमले की तैयारियां कर रहे हैं, एैसा हमला जो मुलसमानों के मौता के हमले में चालाकी से पीछे हटने की बात भूल जायेंगे। आप (صلى الله عليه وسلم) ने फै़सला किया के वोह बज़ाते ख़ुद इस जंग में शरीक होंगे और रूमियों के सरदारों को वोह सबक़ सिखायेंगे के वोह मुसलमानों से लड़ने या हमला करने की बात कभी नहीं सोचेंगे। गर्मियों का मौसम अपने आखि़री हफ़्तों में था और गर्मी अपने पूरे शबाब पर थी फिर मदीने से शाम तक का सफ़र इस शदीद गर्मी में निहायत दुशवार गुज़ार इस सफर में खाने-पीने और रसद के अलावा इसतिक़ामत बहुत ज़रूरी थी लिहाज़ा ये ज़रूरी हुआ के लोगों को बता दिया जाये के रूम की सरहद पर जाकर लड़ना है जबके येह बात अल्लाह के रसूल सल्ल0 की आदत और तरीक़े के खि़लाफ़ थी जो आप (صلى الله عليه وسلم) ने साबिक़ा ग़ज़वात में अपनाई थी जिनमें आप (صلى الله عليه وسلم) अपने मक़सद और मंज़िल दोनो को न सिर्फ़ राज़ में रखते थे बल्के अकसर एैसे रास्ते से सफ़र करते थे के दुश्मन उनकी मंज़िल के बारे में धोके में रहे। लेकिन इस बार आप (صلى الله عليه وسلم) ने लोगों को बता दिया के रूम की सरहदों पर जाकर लड़ना मक़सूद है। फिर क़बायल से कहा गया के वोह तैयारी करें और जितनी बड़ी फ़ौज तैयार करना मुमकिन था वोह की गई। मुसलमानों में जो लोग साहिबे हैसिय्यत थे उन्हें हुक़्म दिया गया के वोह जो कुछ अल्लाह ने अपने फ़ज़ल से उन्हें दिया है उसमें से इस फ़ौज के लिये लायंे। आप (صلى الله عليه وسلم) ने लोगों को इस फ़ौज में शामिल होने के लिये तरग़ीब दी।

इन हालात पर लोगों का इस तरग़ीब पर रद्दे अ़मल मुख़तलिफ़ था, वोह लोग जिन्होंने इस्लाम को सिदक़े दिल से क़ुबूल किया था और उनके सीने हिदायत और नूर से पुर थे। उन्होंने फ़ौरन इस पर लब्बैक कहा और शामिल हो गये, इन में एैसे ग़रीब लोग भी थे जिनके पास अपने लिये एक सवारी भी न थी, और इनमें एैसे दौलत मंद लोग भी थे जिन्होंने अपना सब कुछ सामने लाकर रख दिया के जंग में काम आ जाये। येह दोनों किस्म के लोग अपने आपको अल्लाह के रास्ते में शहीद होने के शौक़ में पेश कर रहे थे। इनके बरअ़क्स वोह लोग जो या लालच या ख़ौफ़ के सबब इस्लाम में बादिले ना ख़्वास्ता दाखि़ल हुये थे, माले ग़नीमत की लालच, या मुसलमानों की कु़व्वत का ख़ौफ़़, के सबब तराश रहे थे और उनके कदम नहीं उठ रहे थे। इनका रद्दो अमल बस वाजबी था और ये लोग आपस में सरगौशियां करते के इतनी दूर इस शदीद जल्ती तपती गर्मी में ले जाकर लड़ा जा रहा है। ये मुनाफिक़ थे और एक दूसरे से केहते थे के इस गर्मी में न निकलो, इस पर अल्लाह तआला ने येह आयत नाज़िल फरमाई।

وَقَالُوۡا لَا تَنۡفِرُوۡا فِى الۡحَـرِّؕ قُلۡ نَارُ جَهَـنَّمَ اَشَدُّ حَرًّا‌ؕ لَوۡ كَانُوۡا يَفۡقَهُوۡنَ‏ ﴿۸۱﴾فَلۡيَـضۡحَڪُوۡا قَلِيۡلاً وَّلۡيَبۡڪُوۡا ڪَثِيۡرًا‌ ۚ جَزَآءًۢ بِمَا كَانُوۡا يَڪۡسِبُوۡنَ‏ ﴿۸۲﴾

और उन्होंने केह दिया के इस गर्मी में मत निकलों। केह दीजिये के दौज़ख़ की आग बहुत ही सख़्त गर्म है काश के वोह समझते होते। पस उन्हें चाहिये के बहुत ही कम हंसे और बहुत ज़्यादा रोयें, बदले में इस के जो येह करते हैं। (तजुर्मा मआनी कुऱ्आन करीमः सूरहः तौबाः 26)

इन्हीं बहाना बनाने वालों लोगों में से अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने बनी सलमा के जद् बिन क़ैस से पूछा के एै जद क्या तुम बनी असफ़र से लड़ना चाहोगे? तो उसने जवाब दिया, एै अल्लाह के रसूल सल्ल0 आप मुझे रहने दीजिये, इम्तेहान में न डालें मेरे सारे लोग जानते हैं के मैं औरतों के मुआमिले में कच्चा हूँ, वहां बनी असफ़र की रूमी औरतें देखूँगा तो ख़ुद को रोक नहीं पाऊँगा, आँहज़रत सल्ल0 ने उससे किनारा कशी इख़्तियार कर ली। इस सिलसिले में येह आयत नाज़िल हुई।

وَمِنۡهُمۡ مَّنۡ يَّقُوۡلُ ائۡذَنۡ لِّىۡ وَلَا تَفۡتِنِّىۡ‌ ؕ اَلَا فِى الۡفِتۡنَةِ سَقَطُوۡا‌ ؕ وَاِنَّ جَهَـنَّمَ لَمُحِيۡطَةٌ ۢ بِالۡـڪٰفِرِيۡنَ‏ ﴿۴۹﴾

इनमें से कोई तो केहता है मुझे इजाज़त दीजिये, मुझे फ़ितने में न डाले, आगाह रहों वोह तो फ़ितने में पड़ चुके हैं और यक़ीनन दोज़ख़ काफिरों को घेर लेने वाली है। (तजुर्मा मआनी कुऱ्आन करीमः सूरहः तौबाः 49)

इन मुनाफ़िक़ों ने इस बात पर इक़्ितफ़ा नहीं किया के ख़ुद लड़ाई में न जानें के बहाने बनायें बल्के येह दूसरों को भी रोकते थे। हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फैसला किया के इन मुनाफ़िक़ों से सख़्ती से निमट कर इन्हें सबक़ सिखाया जाये। ख़बर मिली के मुनाफ़िक़ीन सुयलम नाम के एक यहूदी की घर जमा हो रहें हैं ताके लोगों के दिलों में वसवसे डाल कर उनको लड़ाई पर जाने से रोक दिया जाये। आप (صلى الله عليه وسلم) ने हज़रत तलहा इब्ने उ़बैद अल्लाह रज़ि0 को कुछ और सहाबा रज़ि0 के साथ वहां भेजा, जिन्होंने उस घर को जला दिया और वहां जमा लोगों को अपनी जान बचा कर भाग जाना पड़ा, इनमें एक मुनाफ़िक़ घर के पिछले दरवाज़े से भागता हुआ अपना तौड़ बैठा। इससे और लोगों को सबक़ मिला के इस किस्म की हरकतों से बाज़ आयें।

जिस शिद्दत और मज़बूती से हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) ने ये फ़ौज जमा की इस का खा़तिर ख़्वाह असर हुआ और एक बहुत बड़ी तादाद इकट्ठा हो पाई जो तीस हज़ार तक पहुँच गई। इस फ़ौज को जैश उल उ़सरा कहा गया यानि एैसी फ़ौज जो बड़ी सख़्त हालात में हो। इस फ़ौज का मुक़ाबिला रूम की बहुत बड़ी फ़ौज से था और इसे मदीने से बहुत दूर जाकर सख़्त गर्मी में लड़ना था। हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) मदीने में वहां के मुआमिलात के काम अंजाम दे रहे थे और आप (صلى الله عليه وسلم) की ग़ैर मौजूदगी में हज़रत अबू बक़र रज़ि0 ने फ़ौज की नमाज़ की इमामत की। आप (صلى الله عليه وسلم) ने मदीने पर मोहम्मद बिन मुस्लिमा को अपना नायब मुक़र्रर फ़रमाया और हज़रत अ़ली रज़ि0 को अपने एहल ओ अ़याल की ज़िम्मेदारी सौंपी और हुक्म दिया के वोह उन्हीं के साथ रहें। इसके अलावा अपनी ग़ैर मौजूदगी के दर्मियान कामों के लिये मुनासिब एहकाम दिये और फ़ौज में लौट आये और इसकी क़ियादत संभाली। फिर हुक्म दिया और फ़ौज निहायत वक़ार के साथ आगे बढ़ी जिसे तमाम अहले मदीना ने देखा, औरतें घरों की छत पर चढ़ कर सेहरा में फ़ौज का शाम की जानिब रवाना होने का ये शानदार नज़ारा देख रहीं थीं। फ़ौज अल्लाह तआला के रास्ते में भूख, प्यास, और गर्मी से बे ख़ौफ शाम की तरफ रवाँ थी। जो लोग पीछे छूट गये थे, उन्हें भी अब हिम्मत हुई और वोह भी अब फ़ौज से मिले। इधर तबूक में रूमियों की फ़ौज ख़ैमाज़न थी, और मुसलमानों का मुक़ाबला करने की तैयारी कर रही थी। रूमियों को जब मुस्लिम फ़ौज के बारे पता चला के वोह इतनी बड़ी तअ़दाद मे आ रही है तो उन्हें मुअता की जंग याद आ गई जंग मुसलमानों की तअ़दाद और कुव्वत कम होने के बावूजूद उन्होंने निहायत बहादुरी और चालाकी से मुक़ाबला किया था, और इस बार तो हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) मुस्लिम फ़ौज की क़यादत फ़रमा रहे थे। इससे दुश्मन इतना ख़ौफ़़ज़दा हुआ के उसने तबूक से पीछे हट कर शाम के अंदरून में वाक़ेए अपने क़िलों में महसूर होने में ही अपनी ख़ैरियत समझी। शाम की हुदूद पर अब कोई चैकसी नहीं रह गई थी। हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) को जब ये ख़बर मिली के ईसाई ख़ौफ़़ज़दा होकर पीछे हट गये हैं। तो आप (صلى الله عليه وسلم) आगे बढ़ते रहे और तबूक पहँुच कर उस पर क़ब्ज़ा कर लिया। आप (صلى الله عليه وسلم) ने इन हालात में दुश्मन का तआक़ुब करना ज़रुरी नहीं समझा और वहीं तबूक में ख़ैमे नसब किये गये। तक़रीबन एक महीना तक वहीं क़याम र हा जिस दौरान वहां के उन क़बाइल से निमटा गया जिन्होंने मज़ाहिमत की। यहीं से आप (صلى الله عليه وسلم) ने रूमी सलतनत के ताबे आने वाले क़बाइल और शहरों के सरदारों को मुरासले भेजे, ईला के सरदार युहना बिन रऊबा, जरबा और अज़रा के सरदार शामिल थे। इन को लिखा था के या तो वोह इताअत क़ूबूल करें या फिर लड़ाई के लिये तैयार हो जायंे, इन सब ने इताअत क़ूबूल की, इस्लामी हुकूमत की ताबेदारी में आ गये और सुलह कर के जिज़्या देना क़ुबूल कर लिया। इसके बाद हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) और इस्लामी फ़ौज मदीना लौट आये।
मदीने में इस दौरान मुनाफ़िक़ीन ने  हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) की ग़ैर मौजूदगी का फ़ायदा उठा कर लोगों में अपना जहऱ हर फैलाने में कोई कसर न उठा रखी थी, वोह मुसलमानों को बग़ावत पर उकसाने लगे थे। मुनाफ़िक़ांे ने मदीने से क़रीब एक घंटे की मसाफ़त के फ़ासले पर ज़ीअ़वान की मक़ाम पर एक मस्जिद बनाई थी जहां से वोह अपनी कार्रवाय्यिाँ करते थ,े अल्लाह के कलाम की तावीलें करके लोगों में इख़्तिलाफ़ डालने लगे थे। इन लोगों ने तबूक के लिये रवानगी से क़ब्ल हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) से गुज़ारिश की थी के वोह इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ें लेकिन आप (صلى الله عليه وسلم) ने वापसी तक उन्हें इंतेज़ार करने को केह दिया था। लेकिन वापसी पर आप (صلى الله عليه وسلم) को मुनाफ़िक़ों की हरकतों की ख़बर मिली और मस्जिद बनाने की हक़ीक़त वही के ज़रीये मालूम हुई तो आप (صلى الله عليه وسلم) ने मस्जिद जला देने का हुक्म दिया और मुनाफ़िक़ीन पर सख़्ती शुरू कर दी जिससे अब उनकी कमर टूट गई और फिर कभी वोह उठ न पाये।

सारे जज़ीराह नुमाये अ़रब में अल्लाह का कलमा बुलंद हो चुका था और हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) के इक़्तिदार को कोई चैलेंज करने वाला न था। अ़रब के क़बाइल के वफ़ूद फ़ौज दर फ़ौज हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) के पास आते और अल्लाह की इताअ़त तस्लीम करते थे।
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