मदनी रियासते इस्लामी का जज़ीरा नुमा-ए-अ़रब पर ग़लबा - 26

मदनी रियासते इस्लामी का जज़ीरा नुमा-ए-अ़रब पर ग़लबा - 26
ग़ज़वा ए तबूक से हुज़ूर अक़दस सल्ल0 ने एक तरफ़ तो अपनी ख़ारिजा पॉलिसी के तहत रियासत की सरहदों को मेहफूज़ किया और दुश्मनों के दिलों में मुसलमानों का दबदबा क़ायम किया, साथ साथ अपने बाद आने वाले मुलसमानों के लिये इस्लाम की दावत को जज़ीरा नुमा-ए-अ़रब के बाहर फैलाने का मंसूबा भी सामने रख दिया। ग़ज़वा ए तबूक के फ़ौरन बाद जुनूबी इलाक़े यानि यमन, हदरमूत और उ़मान ने भी अपने इस्लाम क़ूबूल करने का और इस्लामी रियासत के दायरा ए इक़्तिदार में आ जाने का एैलान कर दिया। हिजरी का नवाँ साल आते ही एक के बाद एक क़बीले आता चला गया और इताअत क़ुबूल करता रहा। अब मुकम्मल जज़ीरा नुमा-ए-अ़रब रियासत इस्लाम के ताबे हो गया था और सरकशों पर क़ाबू पा लिया गया था। अलबत्ता कुछ मुशरिकीन रह गये थे जिन्हें एक मुआहिदे के तहत अपने बुतों की इ़बादत करने की छूट थी और वोह काअ़बतु अल्लाह में अपने तरीक़े से हज भी कर सकते थे। येह एहद इस वजह से था के अ़रब की क़दीम रिवायत थी के काअ़बतु अल्लाह सब के लिये खुला हो और हराम महीनों में किसी को जंग का ख़ौफ़ न हो। लेकिन जब सारा अ़रब अल्लाह के रसूल सल्ल0 की इताअ़त और इस्लामी रियासत के ज़ेरे इक़्तिदार आ गया और सिर्फ़ ये मुशरिक़ीन बचे जो ग़ैरुल्लाह की इ़बादत कर रहे थे, तो क्या एैसे में इन मुिश्रकीन को इनके हाल पर छोड़ दिया जाता और काअ़बतुल्लाह में दो बाहम मुख़ालिफ़ और मुतज़ाद दीन के पैरू अपनी-अपनी इ़बादत करते?

एक एैसा दीन जिसमें बुत तोड़ दिये जाते हैं और दूसरा एैसा मज़हब जिसमें उन्हीं बुतों की बंदगी की जाती है। अब ये नागुज़ीर हो गया था के इन मुषिरकीन की सारे अ़रब में सरकोबी की जाये और उन्हें काअ़बतुल्लाह में दाखि़ले से बाज़ रखा जाये। इस वक़्त यानि जंग ए तबूक के बाद अल्लाह तआला ने सूरतः तोबा नाज़िल फ़रमाई। हज़रत अबू बक़र रज़ि0 हज के लिये एक जमाअ़त की क़यादत करने हुये रवाना हो चुके थे लिहाज़ा हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने हज़रत अ़ली रज़ि0 को भेजा के वोह हज की उस जमाअ़त से जा मिलें और उन्हें सूरः तौबा की तिलावत करके सुनायें। हज़रत अ़ली रज़ि0 और हज़रत अबू हुरैरह रज़ि0 रवाना हुये और मिना में हज़रत अबू बक्र रज़ि0 मिले और लोगों को ये आयात पढ़कर सुर्नाइं।

بَرَآءَةٌ مِّنَ اللّٰهِ وَرَسُوۡلِهٖۤ اِلَى الَّذِيۡنَ عَاهَدتُّمۡ مِّنَ الۡمُشۡرِڪِيۡنَ ؕ‏ ﴿۱﴾

अल्लाह और उसके रसूल की सबसे बेज़ारी का एैलान है। इन मुषिरकीन के बारे में जिनसे तुमने एहद ओपयाम किया था। (तर्जुमा मआनी कुरआन करीम सुरहः तौबाः आयतः 01)

وَ قَاتِلُوا الْمُشْرِڪِيْنَ كَآفَّةً كَمَا يُقَاتِلُوْنَڪُمْ كَآفَّةً١ؕ وَ اعْلَمُوْۤا اَنَّ اللّٰهَ مَعَ الْمُتَّقِيْنَ

और तुम तमाम मुश्रिकांे से जिहाद करो जैसे के वोह तुम सबसे लड़ते हैं। और जान रखो के अल्लाह तआला मुत्तक़ीयों के साथ है। (तर्जुमा मआनी कुरआन करीम सुरहः तौबाः आयतः 36)

हज़रत अ़ली रज़ि0 ने येह आयत पढ़कर क़दरे तवक़्क़ुफ़ किया फिर फरमायाः एै लोगो का़िफर जन्नत में दाखि़ल नहीं होंगे, इस साल के बाद कोई मुशरीक हज नहीं करेगा, न ही बैत अल्लाह का उ़रयानी की हालत में तवाफ करेगा। जिस किसी का अल्लाह के रसूल सल्ल0 से मुआहिदा हो सो एैसा मुआहिदा इसकी मुतअै़य्यना मुद्दत तक का होगा। फिर लोगो को चार माह का वक़्त दिया जिसके दौरान उन्हें अपने घरों को लौट जाना था। इसके बाद किसी मुिश्रक ने हज नहीं किया और न ही तवाफ़े उ़रयां हुआ।

हज़रत अ़ली रज़ि0 के दिये गये इस हुक्म के बाद अ़रब के पूरे इलाक़े पर अब सिर्फ़़ अल्लाह ही का कलमा बुलंद था। तमाम इलाक़ांे पर अब इस्लामी रियासत ही का इक़्तिदार था जिसकी बिना अ़क़ीदाह इस्लामी पर थी। सूरह तोबा के नाज़िल होने और मुशिरकीन का क़िला फ़तह कर देने के बाद रियासत इस्लाम का क़याम मुकम्मल हो गया और हर अ़क़ीदह जो अ़क़ीदा ए इस्लाम से मुतनाक़िज़ था, वोह ख़त्म हो गया। अब इस्लाम की येह रियासत इस्लाम का पैग़ाम सारे आलम में पहुँचाने के लिये पूरी तरह तैयार थी।
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