मुस्लिम दुनिया में शिक्षा (तालीम) का स्‍तर क्‍यों गिरता जा रहा है ?

मुस्लिम दुनिया में शिक्षा (तालीम) का स्‍तर क्‍यों गिरता जा रहा है ?


सन 2008 में वर्ल्‍ड बैंक के द्वारा किये गये सर्वे में मुस्लिम दुनिया में शिक्षा (education) सूरतेहाल पर विश्लेषण किया गया। यह रिपोर्ट उत्‍तरी अफ्रीका और मध्‍य पूर्वी देशो पर आधारित है जिसमें बताया गया है कि अरब दुनिया में दूसरे देशों के मुकाबले में शिक्षा का स्‍तर गिरता जा रहा है और इसके लिये फौरी इक़दाम (कार्यवाही) करने की जरूरत है ताकि बेरोज़गारी की समस्‍या को काबू मे किया जा सके। रिपोर्ट कहती है कि अरब दुनिया में 14 प्रतिशत औसतन बेरोज़गारी है, जो कि दुनिया के दूसरे देशो से अधिक है, सिवाऐ सब-सहारा (Sub-Sahara) अफ्रीका के। फिलिस्‍तीनी इलाके में सबसे ज्‍यादा बेरोजगारी (26 प्रतिशत) है।
    वर्ल्‍ड बैंक के उच्‍च अधिकारी, मरवान मुआशर, जिसने इस रिपोर्ट में सहयोग किया है, कहा कि आर्थिक विकास शिक्षा में सुधार के साथ-साथ चलता है, जबकि इस इलाके में नौजवानों की जनसंख्‍या बहुत अधिक है। ''यह नौजवानों का ईलाका है – 60 प्रतिशत इलाके में 30 साल से कम उम्र के नौजवान है, जिसके मुताबिक 100 मिलियन नई नौकरिया (Job) अगले 10 से 19 सालों मे बढाने की ज़रूरत पडेगी।'' एक और अध्‍ययन के मुताबिक, जो ट्यूनीसिया की एक संस्‍था ‘अरब लीग ऐज्‍यूकेशनल कल्‍चरल एण्‍ड साईन्‍टीफिक और्गनाईजे़शन’ के मुताबिक अरब दुनिया ने 300 मिलियन (30 करोड) लोगों में 30 प्रतिशत अनपढ हैं। मुस्लिम दुनिया ने विज्ञान और तकनीक के मामले में कोई योगदान नहीं किया है। यह मायूसी, बदनज़मी, (अनारकी) और (अफरातफरी) का शिकार रही है जहॉ हुक्‍मरानो को गद्दी पूरी जिंदगी के लिये विरासत में मिलती है और वोह इस बात को यकीनी बनाऐ रखतें है कि जनसंख्‍या गरीबी में जि़न्‍दगी गुजा़रती रहे और उनकी तालीमी ज़रूरतो पर बहुत कम ध्‍यान दिया जाता है।
    इस रिपोर्ट ने इस बात की तस्‍दीक की के इस इलाके ने सिर्फ 5 प्रतिशत GDP और 20 प्रतिशत सरकारी बजट शिक्षा पर खर्च किया है, पिछले 40 सालों में। खाडी देश और मिस्र जैसे कुछ देशों में विकास हुआ है जहॉ कई बच्‍चो़ं ने अनिवार्य शिक्षा से फायदा उठाया है और उन्‍हें अपनी अनिवार्य शिक्षा को जारी रखने का मौका मिला। इन लोगों के तालीमी नताईज में सुधार हुआ है। हालांकि इस इलाके ने आमतौर से अपने इंसानी साधनो का बहतरीन इस्‍तेमाल नहीं किया। ग्रेजूऐट्स (स्‍नातको) की बेरोज़गारी की तादाद अधिक है और पढे-लिखे लोगों में ज्‍़यादातर लोग सरकारी संस्‍थाओं के द्वारा रोज़गार पाते है। इसमें कोई हैरत की बात नही है कि इस इलाके में मानवीय संसाधन (human resource) की बडी तादाद, आर्थिक तरक्‍की, इनकम के बटवारे और गरीबी में कमी के बीच आपसी सम्‍बंध कमज़ोर है। इस बात से यह बिल्कुल साफ है कि मुस्लिम हुक्‍मरान वैचारिक तौर पर दिवालिया हो चुके है जिनके पास मुस्लिम दुनिया के लिये कोई वीज़न और दूरअन्‍देशी नहीं है। बल्कि दरहक़ीक़त में ऐसी पॉलिसियों को अपनाया है जिन्‍होंने मुस्लिम ज़मीनो में समस्‍याओं को और अधिक बडा दिया है। सउदी अरब का शाही खानदान मिलियन डॉलर हर साल शोपिंग मॉल और पारिवारिक विदेश यात्राओं पर खर्च करते थे। मिस्र के हुस्‍ने मुबारक ने अपने लोगों से ज्‍़यादा अपने महलों पर खर्च किया, जबकि जॉर्डन (उरद्दन) renewable उर्जा के उत्‍पादन पर अपने लोगों की खुशहाली से ज्‍़यादा खर्च करता है। मुस्लिम हुक्‍मरानों के लिये शिक्षा को तरजीह नहीं है। यहीं वजह है कि कुशल workforce मुस्लिम दुनिया से विदेशो में ज्‍़यादा समय गुज़ारता हैा पश्‍चिमी देशों में, शैक्षिक curriculum उनकी सेक्‍यूलर मूल्‍यों को ध्‍यान में रखकर तैयार किया गया है। खासतौर से अमरीका और ब्रिटेन के लिये यह जरूरी है कि वोह अपने विकास के लिये उनके पास कुशल मजदूरो की बडी़ तदाद मौजूद हो जो के उनके घरेलू और विदेश नीति के उद्देश्यों को पूरा करने में सहयोग करें। ऐतिहासिक लिहाज़ से मुस्लिम दुनिया शिक्षा में बहुत आगे थी और साइन्‍स और तकनीकी मे जबरदस्‍त योगदान दिया। वह खिलाफते अब्‍बासिया थी जिसने सबसे पहले मुस्लिम दुनिया में औपचारिक शिक्षा (formal education) की शुरूआत की और जिस दौर को इतिहासकारो ने इस्‍लाम का सुनहरा युग कहा है। उस दौर में साईन्स के कई मैदानो में काबिले कद्र तरक्‍की हुआ था। खुलफा के दरबार की तरफ साईन्‍सदान, कवि, फीजिशियन (हकीम), फलसफी वगैराह खिचकर चले आते है जिन्‍हे खुलफा की तरफ से तनख्‍वाह मुकर्रर होती थी। शिक्षा का विकास हुआ और रंग, नस्‍ल, कबीले भी इसमें रूकावट नहीं बनी। खिलाफत में मस्जिदे बुनियादी शैक्षणिक संस्थाऐं होती थी। हालांकि जैसे-जैसे शिक्षा की मांग बडी़ तो मदरसो –आधुनिक युग का कॉलेज की शुरूआत हुई। इससे पहले शिक्षा मस्जिदो में अनोपचारिक रूप से (informal) दी जाती थी। इस इब्तिदाई दौर में विधार्थी कुछ ज्ञानी आलिमो के, जैसे शेख वगैराह, के इर्द-गिर्द जमा होते थे। और ये मशाईख लगातार चलने वाले धार्मिक सेशन्‍स (म‍जलिसे) मुनक्किद करते थे। मदरसो की नींव डलने के बाद जामिया (यूनिवर्सिटी) वजूद में  आई। गीनी़ज बुक आफॅ वर्ल्‍ड रिकार्ड ने यूनिवर्सिटी आफॅ अल-काराउन (जमिअत अल-करावीन) मोरक्‍को को दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी तस्‍लीम किया है जिसे 859 ईसवी में बनाया गया था। काहिरा, मिस्र की अल-अजहर यूनिवर्सिटी, दसवी सदी ईसवी में संगे बुनियाद डाली गई। यह विभिन्‍न विषयों में शैक्षिणिक डिगरियॉ देती थी जिसमें पोस्‍ट ग्रेजूऐट डिगरियॉ भी शामिल थी, एक मुकम्‍मल और विस्‍तृत यूनिवर्सिटी थी। शिक्षा (तालीम) का यह विस्‍तृत रूप का अनुसरण (emulation) बाद में यूरोपिय देशों ने किया, जिसकी वजह से आज भी बहुत सी समानताऐ पाई जाती है। यूनिवर्सिटीयों में इस्‍तेमाल होने वाला शब्‍द ‘चेयर’ का तसव्‍वुर अरबी के लफ्ज ‘कुर्सी’ से लिया गया है, जिसका इस्‍तेमाल मदरसो में अलमती तौर पर (Symbolically) उस कुर्सी (पद) के लिये होता था जहॉ से आलिम विधार्थियो को तालीम देते थे। आधुनिक ज़माने में इस्‍तेमाल होने वाले ‘डॉक्‍टरेट’ (डाक्‍टर) शब्‍द का लेटिन भाषा में अर्थ है ‘पढा़ने का लाईसेंस’। इस तसव्‍वुर (अवधारणा) का यूरोप में पहुचने से पहले विकास हो चुका था, जो अरबी भाषा के वाक्‍य ‘इजाज़ा अत-तदरीस’ का सीधा तर्जुमा है। पढा़ने की यह ईजाज़त उस विधार्थी को एक आलिम के जरिये दी जाती थी। यह विधार्थी आलिम की निगरानी में रिसर्च करता है। किसी विषय पर फतवा (Islamic verdict/कानूनी फैसला) देकर फिर आलिमो की एक जमात (panel) के सामने उसे साबित करता। आज भी आधुनिक युग का ग्रेजुऐशन सेरेमनी (Graduation Ceremony) उस दौर के मदरसो में दी जाने वाली ईजाजा़ की रस्‍म (Ceremony) से मिलती-जुलती है। इस रस्‍म में आज भी जुब्‍बा (robe) पहना जाता है जिसे ‘जुब्‍बा तुल फक़ीह’ कहा जाता था, और जो किसी आलिम को ईज़ाजा़ देने पर दिया जाता था।
    खिलाफत ने सबसे पहले आम जनता के लिये अस्‍पताल खोला (इससे पहले मआबद/मंदिरों में ईलाज और सोने का इंतज़ाम होता था), मानसिक रोगियों के लिये अस्‍पताल, जनता के पढ़ने के लिये पुस्‍तकालय, किताबे जारी करने वाले पुस्‍तकालय और डिग्रीयॉ प्रदान करने वाली यूनिवर्सिटीयो की स्‍थापना की। इसके अलावा भोगौलिक प्रयोगशाला (astronomical observatory) का अनुसंधान (research) संस्‍था के तौर पर खोला गया। सबसे पहली डिग्री जहॉ विधार्थियों को मेडिकल के क्षेत्र में डिप्‍लोमा दिये गये, वोह बिमारिस्‍तान मेडिकल यूनिवर्सिटी होस्पिटल था। जो विधार्थी मेंडिसिन में डाक्‍टरी की योग्‍यता हासिल कर लेते थे उन्‍हे यह डिप्‍लोमा दिये जाते थे (नवी सदी इसवी में)।
    सर जोन बगोट गलब (Sir John Bagot Glubb ) लिखते है, '' मामून (ख‍लीफा) के जमाने में बग़दाद में मेडिकल स्‍कूल बहुत सक्रिय थे। खलीफा हारून अल-रशीद के ज़माने में सबसे पहले बग़दाद में जनता के लिये मुफ्त अस्‍पताल खोला गया। जब यह व्‍यवस्‍था विकसित हुई तो फिजिशियन और सर्जनो की इनेक़ाद (appoint) किया गया जो मेडिकल विधार्थियों को लेक्‍चर देते थे और योग्‍य विधार्थियों को डिप्‍लोमा प्रदान करते थे। मिस्र में पहला अस्‍पताल सन्‍ 872 इसवी में खोला गया और उसके बाद पब्लिक (सरकारी) अस्‍पताल पूरी रियासत मे स्‍पेन से मग़रिब और फारस तक फैलते गये। मदरसे पहले कानूनी स्‍कूल होते थे और कई लोगों ने यह निष्‍कर्ष निकाला है कि ईगलेण्‍ड के ''लॉ स्‍कूल’’ जिन्‍हे ‘इन्‍स आफॅ कोर्ट इन इंग्‍लैण्‍ड’ भी कहा जाता है, ने अपनी प्रेरणा उन मदरसों से ली जहॉ ईस्‍लामी कानून और विचारधारा पढा़या जाता था।''
    इस्‍लाम में शिक्षा व्‍यवस्‍था की बुनियाद लोगों को इस्‍लामी फिक्र के लिये तर्बियत देना है ताकि वोह इसमें भरोसा हासिल करें और उसे दुनिया तक पहुंचाऐ। इस्‍लाम मुसलमानों पर यह फर्ज़ क़रार देता है कि वोह सिर्फ शहादत की गवाही ही न दे बल्कि इस्‍लाम का अध्‍ययन करने के आदी हों। माज़ी में मुसलमानों ने इस्‍लाम और इस्‍लामी संस्‍कृति का गहरा अध्‍ययन किया, और वोह इस्‍लाम के बारे में बिल्‍कुल साफ नज़रिया रखते थे। यह ज्ञान उनके नज़रियें (horizons) और Perceptions (दृष्टि) का विस्‍तार करता था, जिससे उनकी अक़ली (बौद्धिक) कुव्‍वत बढ़ जाती थी, और उन्‍हे दूसरों को टीचर (अध्‍यापक) बनाती थी। मुख्‍तसर यह है कि, मुसलमान भूत (माज़ी) में दूसरी कौमो से बहुत आगे निकल गये जब उन्‍होंने ईस्‍लाम को अपने विकास का केन्‍द्र बिन्‍दु बनाया। इसका नतीजा यह हुआ कि वोह अपने समय की सुपरपावर बन गऐ जिन्‍होंने ने विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बडी़ तादात में योगदान दिया। आज के मुस्लिमों के लिये आगे का रास्‍ता यह है कि वोह अपने इतिहास से सीखे और उसी तरह समझे जैसे कि उनसे पहले के मुस्लिमों ने समझा था – वोह यही कि इनकी र्इस दुनिया और अगली दुनिया में कामयाबी सिर्फ ईस्‍लाम पर आधारित है।
       
  
   
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